जालंधर,(संजय शर्मा)-दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान एवं श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर द्वारा श्रीराम कथामृत कार्यक्रम के अंतर्गत तीसरे दिन की कथा में परम वंदनीय गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या मानस मर्मज्ञा साध्वी सुश्री जंयती भारती जी ने सीता स्वयंवर प्रसंग का वाचन किया। प्रसंग में उन्होंने बताया कि किस प्रकार प्रभु श्रीराम जी अपनी दिव्य लीलाओं को करते हुए ताड़का का वध करते हैं व आगे बढ़ते हुए गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार करते हैं। यज्ञ की रक्षा के उपरान्त गुरू विश्वामित्र जी के साथ जनकपुरी में प्रवेश करते हैं। साध्वी जंयती भारती जी ने बताया कि श्रीराम का श्रीजानकी जी से प्रथम मिलन पुष्प वाटिका में होता है। यहीं से शुरू होता है जानकी जी का आदर्श चरित्र । उन्होंने बताया कि यह पुष्प वाटिका क्या है? संत समाज का प्रतीक है। जब हमारे जीवन में सत्संग का आगमन होता है तब हमारा मिलन प्रभु एवं भक्ति से होता है। उन्होने बताया कि सत्संग दो शब्दो के सुमेल से बना है सत् व संग, सत् का भाव ईश्वर एवं संग का भाव मिलाप । अर्थात् जब तक हम ईश्वर से नहीं मिल पाते, उसका साक्षात्कार नहीं कर लेते तब तक जीवन में सत्संग नहीं हो सकता। क्योंकि सत्संग मात्र बातें या चर्चा का विषय नहीं वरन् सम्पूर्ण व्यवहारिकता है। हमारे जीवन में वास्तविक सत्संग तब घटित होगा जब हम उस एक अर्थात ईश्वर को जान लेगें । परन्तु अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि ईश्वर से कौन मिलाएगा ? मात्र गुरू, क्योंकि वो ही है जो हमारे तम को तिरोहित कर हमारे घट में ईश्वर का अपरोक्ष अनुभव करवा सकता है। प्रभु श्रीराम जब स्वयंवर सभा में पहुंचे तो महाराज जनक की शर्त के अनुसार प्रभु ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे भंग कर दिया। प्रभु की प्रत्येक लीला के पीछे कोई न कोई आध्यात्मिक रहस्य निहित होता है और यह लीला भी हमें संदेश दे रही है । धनुष प्रतीक है अंहकार का। जब तक आप के अन्तः करण में अहंकार के मेघ हैं, तब तक प्रभु रूपी राम और आत्मा रूपी सीता का मिलन सम्भव हो ही नहीं सकता।
भारती जी ने बताया कि प्रभु श्रीराम व जानकी जी का स्वयंवर पूर्ण होने के पश्चात महाराज जनक जी कहते हैं कि आज मैं कृतकृत्य हो गया । कृतकृत्य का भाव है कि अब मेरे जीवन मैं कुछ भी पाना शेष नहीं रह गया। साध्वी जी ने बताया कि ऐसी स्थिति हमारे जीवन में कब आयेगी? जब हमारे जीवन में भी चार चरणों का आगमन होगा, जब हमारे जीवन में ये चार घटनायें घटती हैं तब हमारे जीवन में कृत्यता आती है। पहली ताड़का का वध | ताड़का प्रतीक है हमारी दुराशा की व अहल्या उद्धार का वृतांत आता है अहल्या हमारी बुद्धि की जड़ता की प्रतीक है जब तक हमारी बुद्धि की जड़ता व अंहकाररूपी धनुष भंग न हो, चित्त प्रभु की ओर खिंच नहीं जाता तब तक जीवन आनंदित नहीं हो पायेगा। हमारे जीवन में शांति तभी आयेगी जब हम राम को जान लेंगे। क्योंकि परमात्मा मानने का नहीं जानने का विषय है परमात्मा बातों का नहीं देखनें का विषय है व जब तक हम परमात्मा को देख नहीं लेते तब तक हमारा विश्वास हमारा प्रेम प्रभु के श्री चरणों में नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानंद जी भी कहते हैं कि यदि परमात्मा है तो उसे देखो, आत्मा है तो उसे जानो। परमात्मा को देखना ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। गुरु ही ईश्वर को दिखाने की क्षमता रखता है। कथा समागम के दौरान भाव विभोर श्रद्धालुओं का सैलाब प्रतिदिन इन कथा प्रवचनों को श्रवण करने के लिए उमड़ रहा व कथा का समापन विधिवत प्रभु की आरती के साथ हुआ।