जालंधर, (विशाल/रोजाना आजतक )-पराली को आग लगाने के कारण लोगों में सांस की गंभीर समस्याएं बढ़ने और कोरोना की स्थिति खराब होने की संभावना के चलते जालंधर के युवा किसानों ने प्रशासन द्वारा पराली जलाने के ख़िलाफ़ चलाई जा रही मुहिम में योगदान देना शुरू कर दिया है और उनकी ओर से किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है।गांव राजोवाल का निवासी सुखजिन्दर सिंह, जो पिछले तीन वर्षों से 15 एकड़ ज़मीन पर फसलों के अवशेषों का उचित प्रबंध मलचर, आर.एम.बी. पलोआ के साथ कर रहा है, ने कहा कि वह इस तकनीक के द्वारा जहाँ गेहूँ की फ़सल का अच्छा झाड़ प्राप्त कर रहा है वहीं खाद का प्रयोग भी कम हुआ है। सुखजिन्दर सिंह ने बताया कि उसने अपने गाँव के साथी किसानों के सामने इस तकनीक का प्रदर्शन करते हुए उनको पराली जलाने के कारण वातावरण, मिट्टी और मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के बारे जानकारी भी दी गई है।उसने बताया कि इससे सम्बंधित उसने सुपरसीडर खरीदा है और खेतों में पराली की कटाई कर गेहूँ की बिजाई करेगा। उसने जानकारी दी कि गांव के तकरीबन 20-25 किसान पहले ही उसकी मशीन बुक करवा चुके हैं, जिससे पराली जलाने के मामलों को कम करने में काफ़ी सहायता मिलेगी। गांव चौलांग का किसान गुरमीत सिंह, जो पिछले 5 सालों से 29 एकड़ में फसलों के अवशेष खेतों में ही मिला रहा है, ने कहा कि उसकी तरफ से बिजाई की गई गेहूं की फ़सल का अच्छा झाड़ देख कर अधिक से अधिक किसानों को पराली जलाने के ख़िलाफ़ शुरु किए गए अभियान में शामिल होने के लिए कहा गया। उसने बताया कि उसकी तरफ से किसानों को पराली जलाने के कारण वातावरण और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर होने हानि के बारे में भी अवगत करवाया जा रहा है।उसने बताया कि उसके पास सुपरसीडर, हैपी सिडर, रोटावेटर और मलचर है और उसके साथी किसान, जो उस के गाँव के लगभग 150 एकड़ क्षेत्रफल में खेती करते हैं, पराली का प्रबंधन करने के लिए इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं और पराली जलाने का सहारा नहीं लेंगे। बस्ती पीर दाद के किसान तरसेम सिंह जिन्होंने पिछले साल 2 एकड़ में पराली का प्रबंधन किया था और उसकी तरफ से इस बार पूरे 10 एकड़ क्षेत्रफल गेहूँ की बिजाई के लिए सुपराईडर का प्रयोग किया जायेगा ,क्योंकि इससे फ़सल और ज्यादा झाड़ मिलता है।उसने कहा कि उसकी तरफ से पहले ही कस्टम हायरिंग सैंटर से मशीन बुक करवा दी गई है और पराली जलाने के कारण वातावरण को होने वाले नुक्सान के कारण पराली न जला कर उसका उचित प्रबंधन किया जायेगा। मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिन्दर सिंह ने बताया कि साल 2019 -20 दौरान धान के 1.71 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में से 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की पराली का प्रबंधन इन -सीटू प्रक्रिया के द्वारा किया गया था। उन्होनें कहा कि बहुत से किसान धान की पराली के उचित प्रबंधन में शानदार मिसाल पेश करे हैं और विभाग की तरफ से पराली जलाने के विरुद्ध शुरु की जंग में ऐसे किसानों की अहम भूमिका के लिए उनका सम्मान करने की योजना भी बनाई जा रही है।