माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर, आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर

जालंधर, मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नजदीक लम्मा पिंड चौक जालंधर में श्री शनिदेव महाराज जी के निमित्त श्रृंखलाबद्ध सप्ताहिक दिव्य हवन यज्ञ सम्पन्न किया गया।

सर्व प्रथम ब्राह्मणों द्वारा मुख्य यजमान कुलविंदर सिंह से सपरिवार पंचोपचार पूजन,षोढषोपचार पूजन, नवग्रह पूजन के उपरांत हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई।
श्री शनिदेव महाराज जी के निमित्त हवन-यज्ञ की पूर्ण आहुति उपरांत आए हुए भक्तजनों से अपनी बात कहते हुए सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज दिव्य हवन पर उपस्थित प्रभु भक्तों को संत कबीर दास जी के जन्मोत्सव पर बधाई देते हुए संत कबीर दास जी का एक प्रसिद्ध दोहे का अनुसरण करते है कि *‘‘ माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर, आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ’’*
नवजीत भारद्वाज जी दोहे का अर्थात् समझाते है कि कबीर दास जी कहते हैं कि मायाधन और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती। मनुष्य का मन बड़ा ही विचित्र होता है। दूसरों के सुख को देखकर दुखी होना ईर्ष्या कहते हैं। ईर्ष्या एक अनावश्यक विकार है, जिसका त्याग किया जा सकता है। जब हम किसी विषय में अपनी स्थिति या अपने को उन्नत कर सकने में अयोग्य पाते हैं, तभी इस इच्छा का उदय होता है। ईर्ष्या एक छिपी हुई वृत्ति है। इसे धारण करने वाले इंसान भी कभी स्वीकार नहीं कर पाता कि उसे किसी से ईर्ष्या है। वह प्रत्यक्ष रूप से लोगों के सामने कभी नहीं दर्शाता है, न ही इसका कोई बाहरी लक्ष्ण दिखाई पड़ता है।ईर्ष्या करना आमतौर पर लोग स्वीकार नहीं करते, क्योंकि स्वयं लोगों को भी नहीं लगता कि वह ईर्ष्या वृत्ति से ग्रसित हैं। नवजीत भारद्वाज जी प्रभु भक्तों को विनम्र स्वभाव से समझाते है कि ईर्ष्या का परिणाम अक्सर निष्फल ही जाता है। अधिकतर तो जिस बात से हम सब ईर्ष्या करते हैं, वह ऐसी बात होती है, जिस पर हमारा तनिक भी बस नहीं चलता। जब अपनी स्थिति में मनोनुकूल परिवर्तन करने की सामथ्र्य नहीं है, तब हम दूसरों की स्थिति में कहां परिवर्तन कर सकते हैं। ईर्ष्या की एक बात तो है कि यह किसी आसपास के जानने वाले या अपने समान व्यक्ति से ही होती है। अक्सर लोग अपने नाते-रिश्तेदारों, व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों, पड़ोसियों से ईर्ष्या करते हैं। अनजान व्यक्ति से ईर्ष्या नहीं होती।
*दूसरे के दोष और त्रुटियों को देखने के बजाय उनकी अच्छाइयों को खुले मन से देखें और वैसा ही आचरण अपनाने की कोशिश करें।* अगर किसी के धन, ऐश्वर्य, सुख को देखकर अपनी त्रुटि पर दुख होता है तो इसको सकारात्मक रूप से लिया जा सकता है। तब यही हमारे अंत:करण की प्रेरणा भी बन सकती है, क्योंकि कभी-कभी सफल व्यक्ति को देखकर बड़ा सहारा मिलता है।इस अवसर पर पूनम प्रभाकर, श्वेता भारद्वाज,अमरेंद्र कुमार शर्मा, राकेश प्रभाकर, समीर कपूर, रोहित भाटिया, बावा जोशी, बावा खन्ना, अश्विनी शर्मा,रवि भल्ला, जगदीश, पप्पू ठाकुर, ठाकुर बलदेव सिंह ,सुक्खा, अमरजीत , प्रिंस , अमनदीप शर्मा, त्रेहन सहित भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।

हवन-यज्ञ उपरांत विशाल लंगर भंडारे का आयोजन किया गया।

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