राम मंदिर से दलित-शोषित वर्ग के साथ यादव समुदाय को साधने का बीजेपी प्लान?

अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. देश की दिग्गज हस्तियों को भव्य कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण तो भेजा ही जा रहा है, साथ ही ऐसी जाति के लोगों को भी बुलाया जा रहा है जिन्हें समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. ऐसी ही एक जाति है डोम जाति. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के डोम राजा परिवार को गुरुवार को निमंत्रण भेजा गया. बड़ी बात ये है कि यह निमंत्रण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक स्वर्गीय जगदीश चौधरी के भाई अनिल चौधरी को पत्नी संग दिया गया है. डोम राजा परिवार की राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका बताई बताई जाती है. 1994 में राम मंदिर आंदोलन का बड़ा संदेश देने के लिए डोम राजा परिवार ने सहभोज का आयोजन रखा था. उस वक्त सभी संत , विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग इस सहभोज में शामिल हुए थे.

अनिल चौधरी का परिवार इस निमंत्रण को लेकर काफी गर्व महसूस कर रहा है. उनकी मां इस पल को किसी सपने के साकार होने की बात कही हैं. उनका कहना है, सपने में भी ये नही सोचा था कि हमें निमंत्रण मिला है. पीएम मोदी ने हमें निमंत्रण भेजवाया है. यह निमंत्रण समाज में भेदभाव को भी खत्म करेगा. खास बात ये भी है कि डोम राजा परिवार को निमंत्रण देने के लिए VVIP कार्ड का प्रयोग किया गया है, जिसमें उन्हें मंदिर तक पहुंचने के लिए पास भी दिया गया. यानी डोम राजा परिवार प्राण प्रतिष्ठा की पूजा विधि में खास मेहमान के तौर पर मौजूद रहेगा.

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के वंशज रहे हैं. राजा हरिश्चन्द्र ने डोम राजा के यहां नौकरी की. इस कारण डोम राजा परिवार का संबंध भगवान राम से बताया जाता है. वाराणसी के दो घाट राजा हरिश्चंद्र घाट और पवित्र मणिकर्णिका घाट डोमों से भरे रहते हैं. डोम राजा न केवल घाटों पर होने वाले किसी भी विवाद की अध्यक्षता करते हैं, बल्कि उन्हें सबसे अधिक जिम्मेदारियां भी मिलती हैं. वे घाट की देखभाल करने वाले और चिताओं को जलाने वाली आग के मुख्य रखवाले होते हैं. कहा जाता है कि अगर किसी डोम की उपस्थिति के बिना शव का अंतिम संस्कार किया जाता है तो वो स्वर्ग के द्वार में प्रवेश नहीं कर पाता. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, डोमों को भगवान शिव द्वारा श्राप दिया गया था, जब उनके समुदाय के कालू डोम नामक एक सदस्य ने देवी पार्वती की एक बाली चुराने की कोशिश की थी. क्षमा पाने के लिए वे लौ के रखवाले बनने के लिए सहमत हुए.

निमंत्रण सिर्फ डोम राजा परिवार को ही नहीं मिला. काशी के गोवर्धन पूजा समिति के कोषाध्यक्ष सीताराम यादव को भी 22 जनवरी के कार्यक्रम का बुलावा आया है. वह पत्नी के साथ विशेष यजमान के रूप में अयोध्या जाएंगे. डोम राजा परिवार और सीताराम यादव को निमंत्रण देना सभी समाजों को सियासी संदेश देने की रणनीति मानी जा रही है. इससे पहले पुजारियों के चयन, अयोध्या एयरपोर्ट को महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखकर और निषाद समुदाय के एक परिवार को कार्यक्रम का निमंत्रण देकर भी समाज को मैसेज दिया गया.

दरअसल 2024 का लोकसभा चुनाव राम मंदिर के इर्द गिर्द सिमटता जा रहा है. ये मुद्दा बीजेपी के चुनावी एजेंडे में रहा है और अब वो इसके निर्माण से चुनावी माइलेज लेने की पूरी कोशिश में जुटी है. अलग-अलग जाति के लोगों को निमंत्रण भेजकर चुनाव से पहले सामाजिक संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है ताकि ‘रामराज’ की कल्पना का मैसेज दिया जा सके.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस सहित सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का फोकस ओबीसी और दलित वोट बैंक पर रहता है. ये धीरे-धीरे मायावती और बसपा से दूर होता जा रहा है. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी दलितों, ओबीसी और मुसलमानों से जुड़ रही है, वहीं बीजेपी ने भी इस महत्वपूर्ण वोट बैंक से जुड़ने के लिए एक रणनीति तैयार की है, जिसका हिस्सा इन जाति के लोगों को मिल रहे बुलावे के तौर पर देखा जा रहा है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में 17 आरक्षित लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से अधिकांश पर दलित वोट बैंक का प्रभाव है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन 2019 में उसने 15 सीटें हासिल कीं, जबकि बसपा ने दो सीटें जीतीं. नतीजतन राजनीतिक दल इस निर्णायक और मजबूती से स्थापित वोट बैंक के लिए जबरदस्त लड़ाई में लगे हुए हैं.

 

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