आए दिन हम समाचार पत्रों व संचार के अन्य माध्यमों के जरिए समाज में हो रहे परिवर्तन के बारे में पढ़ रहे हैं। समाज में दिन-ब-दिन नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आ रही है। अब प्रश्न यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? हर कोई यह जिम्मेदारी दूसरे पर डाल रहा है , परंतु यदि गहराई से सोचा जाए तो यह बात सामने आती है कि किसी भी इंसान के जीवन में उसके बचपन की भूमिका सबसे अधिक प्रभाव डालती है। विद्यार्थियों को जिस तरह की शिक्षा दी जाती है , वे आगे चलकर समाज में उसी तरह व्यवहार करते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली ही इतनी अव्यवस्थित हो चुकी है कि इसमें नैतिक मूल्य अदृश्य होते जा रहे हैं। हम अपने बुजुर्गों से सुनते थे कि पहले जमाने में शिक्षा प्रणाली कैसे नैतिक मूल्यों पर ही आधारित होती थी। गुरु शिष्य का रिश्ता सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता था लेकिन आज के युग में शिक्षा जगत ने भौतिक तौर पर निस्संदेह बहुत उन्नति की है लेकिन नैतिक मूल्यों में बहुत गिरावट आ चुकी है। आज के विद्यार्थी केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित रह गए हैं। रिश्तों की मर्यादा और उन्हें किस तरह से सहेज कर रखना है , इस बारे में उन्हें कुछ भी नहीं सिखाया जा रहा। विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन से भटका कर स्वप्निल जीवन में धकेल दिया गया है। यही कारण है कि जब उनके सपने पूरे नहीं होते तो वे परेशान होकर गलत रास्ता अपना लेते हैं। आज के विद्यार्थी ही कल के अभिभावक बनते हैं और इस तरह से हम सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे यह नैतिक मूल्य आगे बढ़ रहे हैं।मेरा मानना है कि अध्यापक एक ऐसी ज्योति के समान है जो कई विद्यार्थी रुपी दीप जलाती है और उसकी जिम्मेदारी सबसे अधिक बनती है। इसलिए अध्यापक को पूरी निष्ठा के साथ किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों को नैतिक मूल्यों के बारे में अवगत करवाना चाहिए। एक अध्यापक की आज की कोशिश भविष्य में समाज को सही दिशा देने में अवश्य ही सहायक सिद्ध होगी।
चंद्रशेखर, अंग्रेजी मास्टर
सरकारी मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लाडोवाली रोड
जालंधर, (9501788999)