नई दिल्ली, अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की गई है। यही नहीं इस कोटे में कई राज्यों ने सब-कोटा जोड़ा दिया था, जिसे लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इसे सही करार दिया है। इसके साथ ही उसने 2004 के चिन्नैया केस में आए सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि यह सरकार का अधिकार है कि वह कोटे के अंदर कोटा दे सके। अदालत ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग में समरूपता नहीं है। इसके तहत अलग-अलग जातियां आती हैं और उन्हें अलग-अलग ढंग के भेदभाव और परेशानियों को सामना करना पड़ता है। 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि दलित समुदाय में समरूपता नहीं है। ऐसे में राज्य सरकारें वेटेज के हिसाब से सब-कोटा तय कर सकती हैं। यह देखते हुए ऐसा फैसला हो सकता है कि किन जातियों को ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिव बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ समेत कुल 6 जजों ने एकमत से इस पर मुहर लगाई। वहीं एक जज की राय अलग थी। अदालत ने यह भी कहा कि यह सब-कोटा जमीनी सर्वे के आधार पर ही देना चाहिए। पहले यह पता लगाना होगा कि किस जाति का सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिलें मं कितना प्रतिनिधित्व है।