जालंधर, मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नजदीक लम्मा पिंड चौक जालंधर में मां बगलामुखी जी के निमित्त श्रृंखलाबद्ध सप्ताहिक दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन किया गया।
सर्व प्रथम ब्राह्मणों द्वारा मुख्य यजमान नवदीप सिंह से सपरिवार पंचोपचार पूजन, षोढषोपचार पूजन, नवग्रह पूजन उपरांत हवन यज्ञ में आहुतियां डलवाई।
मां बगलामुखी जी के निमित्त हवन-यज्ञ की पूर्ण आहुति उपरांत आए हुए भक्तजनों से अपनी बात कहते हुए सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी ने दिव्य हवन यज्ञ पर उपस्थित मां भक्तों को ‘‘गुरु लाधो रे! गुरु लाधो रे’’ के प्रसंग का ब्याख्यान किया कि सिखों के आठवें गुरु हरि कृष्ण जी ज्योति ज्योत में समा जाने से पहले वे सभी भक्तों को बाबा बकाला कहकर गुरु गद्दी सौंप गए थे। उनके जाने के बाद 22 ढोंगी गुरु बन बैठे थे। कुछ सालों बाद मक्खन शाह लुबाना, एक गुरुभक्त व्यापारी ने आँधी तूफान की चपेट में आया हुआ अपना जहाज किनारे पहुँचाने के लिए सतगुरु से प्रार्थना की और गुरु नानक देव जी की गद्दी पर विराजमान गुरु को 500 मोहरें भेंट चढ़ाने की मन्नत की। सतगुरु की कृपा से जहाज ठीक-ठाक किनारे पहुँच गया। अपने वादे के अनुसार मक्खन शाह बाबा बकाला साहिब पहुँचे तो गद्दी पर 22 गुरुओं को देख असमंजस में पड़ गए फिर उन्होंने सोचा कि गुरु तो अंतर्यामी हैं, अपने आप बता देंगे। असली गुरु को कैसे खोजा जाए, यह एक समस्या थी। उन्होंने इस मामले पर गंभीरता से विचार किया और अंत में अपना चढ़ावा सभी गुरुओं में बाँटने का मन बना लिया। वे बारी-बारी से उनके पास गए और प्रत्येक को दो-दो मोहरें भेंट कीं। सभी झूठे गुरु खुश हो गए। मक्खन शाह को कोई भी सच्चा गुरु न मिला। भक्तों से किसी और गुरु के बारे में पूछने पर वे एकांत में बैठे गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुँचे। मक्खन शाह ने गुरु तेग बहादुर जी को आंखें बंद किए और मन शांत आराम से बैठा पाया। मक्खन शाह ने प्रणाम किया और बहुत प्यार से गुरु के आसन के पास दो मोहरें रख दी। गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी आंखें खोलीं और बहुत धीरे से मुस्कुराए और कहा, ‘‘हे मक्खन शाह, अब तुम गुरु को धोखा देने की कोशिश क्यों कर रहे हो, पांच सौ मोहरें के बजाय केवल दो मोहर भेंट करके? मुझे अपने गुरुभक्तों द्वारा अपने वादे तोडऩा, झूठ बोलना या दूसरों को धोखा देना पसंद नहीं है।’’ मक्खन शाह, गांव बकाला (अमृतसर) में घर की छत से चिल्लाते हुए – गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे (मुझे सच्चा गुरु मिल गया है!)मक्खन शाह को बहुत आश्चर्य हुआ और उसे समझ में नहीं आया कि क्या कहे। अपनी खुशी को रोक पाने में असमर्थ, एक घर की छत पर चढ़ गया और एक झंडा लहराते हुए, पूरी आवाज में दावा किया, गुरु लाधो रे! गुरु लाधो रे! (मैंने गुरु को पा लिया है! मैंने गुरु को पा लिया है!) *नवजीत भारद्वाज ने इस मनमोहक प्रसंग का अर्थात् समझाते हुए कहा कि अपने सच्चे गुरु पर विश्वास रखो वो कभी भी आपको मझंधार में नहीं छोड़ता। हमारा कर्तव्य भी बनता है कि अपने सच्चे गुरु द्वारा दी गई शिक्षाओं और किए वादों को पूरी निष्ठा से निभाएं। आपका सच्चा गुरु ही आपको सतगुरु से जोड़ता है।
इस अवसर पर सरोज बाला, श्वेता भारद्वाज,रुपम ,सुनीता, अंजू, गुरवीर, मंजू, प्रिया , रजनी, नरेश,कोमल , कमलजीत, धर्मपालसिंह, अमरजीत सिंह, राकेश प्रभाकर, समीर कपूर, रोहित भाटिया ,अमरेंद्र कुमार शर्मा, उदय ,अजीत कुमार , बावा खन्ना, विनोद खन्ना, नवीन जी, कंवल , जोगिंदर, जगदीश ,जोगिंदर सिंह, जगदीश, सुनील जग्गी, दीपक, अशोक कुमार,प्रिंस कुमार, पप्पू ठाकुर, बलदेव सिंह भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।
हवन-यज्ञ उपरांत विशाल लंगर भंडारे का आयोजन किया गया।