जालंधर, डिप्टी कमिश्नर डॉ. हिमांशु अग्रवाल ने बताया कि खरीफ सीजन के साथ-साथ रबी सीजन को भी सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई कसर शेष नहीं छोड़ी जायेगी। उन्होंने कहा कि रबी सीजन में किसानों को डी.ए.पी. तथा वैकल्पिक फास्फोरस युक्त अन्य खादों की कमी नहीं होने दी जायेगी। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के अनुसार जिले में 39,333 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध है, जबकि डिमांड करीब 35 हजार मीट्रिक टन की ही है।
डॉ अग्रवाल ने बताया कि कृषि विभाग को आज खाद का ओर अधिक स्टॉक मिलने से जिले में 32,652 मीट्रिक टन डी.ए.पी एवं 6,681 मीट्रिक टन डी.ए.पी. वैकल्पिक खादें उपलब्ध है।
डिप्टी कमिश्नर ने कृषि विभाग को निर्देश देते हुए कहा कि डी.ए.पी. जमाखोरी रोकने के लिए लगातार खाद स्टोर की नियमित जांच सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा किसानों को डी.ए.पी के विकल्प के रूप में उपयोग किये जानी वाली खादों का उपयोग करने के लिए भी जागरूक किया जाए।
डॉ अग्रवाल ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि खादों, रसायनों और पानी का संयमित प्रयोग करें। उन्होंने विभाग को किसानों को बिना आग लगाए पराली प्रबंधन और आवश्यकतानुसार खादों के उपयोग के बारे में जागरूक करने के लिए निरंतर गतिविधियां शुरू करने के भी निर्देश दिए।
कृषि अधिकारी डॉ सुरजीत सिंह ने कहा कि धान की कटाई के बाद रबी की मुख्य फसल गेहूं को फास्फोरस तत्व की आवश्यकता होती है। उन्होंने किसानों को डी.ए.पी. पर निर्भरता कम करने की अपील करते हुए कहा कि फास्फोरस तत्व की पूर्ति ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (0:46:0), एन.पी.के (12:32:16), सिंगल सुपर फॉस्फेट एन.पी.के (16:16:16) और नाइट्रो फॉस्फेट 20:20:13 आदि से भी किया जा सकता हैं। उन्होंने कहा कि यह खाद भी डीएपी जितने ही प्रभावी हैं। उन्होंने कहा कि वैकल्पिक खादों के प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्वों की पूर्ति के साथ फसल की पैदावार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि फास्फोरस तत्व युक्त कोई भी खाद डी.ए.पी. के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इन खादों के प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्व बरकरार रहते हैं और उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।