फिल्लौर/जालंधर, धान की पराली को जलाने से रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा चलाए गए अभियान को पूरा समर्थन देते हुए ब्लाक फिल्लौर के किसान पराली प्रबंधन में दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहे है।
इन किसानों ने खेतों में पराली की जुताई करके न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान दिया है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता शक्ति भी बढ़ाई है।
गांव मोतीपुर खालसा के प्रगतिशील किसान लखविंदर सिंह ने कहा कि वह पिछले 5 वर्षों से पराली को आग लगाए बिना खेती कर रहे है। उन्होंने कहा कि धान की कटाई के बाद पूरे 100 एकड़ जमीन में मल्चर चलाने के बाद आर.एम.बी. पुलाव के साथ खेतों में दबा कर आलू की बुआई की जाती है।
प्रगतिशील किसान ने कहा कि इससे जहां पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती, वहीं मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। इसके इलावा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी पहले से कम करना पडता है।
इसी तरह गांव मुठड़ा खुर्द के किसान सतविंदर सिंह ने बताया कि उन्होंने पिछले 5 साल से पराली को आग नहीं लगाई है और 20 एकड़ जमीन पर सुपरसीडर से बिजाई की जाती है।
किसान ने कहा कि सुपरसीडर मशीन से किसानों को दोगुना लाभ हो रहा है। इससे किसान केवल एक घंटे में एक एकड़ जमीन में गेहूं की बिजाई कर सकते है और पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती।
पिछले पांच साल से बिना पराली जलाए खेती कर रहे गांव राजपुरा के किसान जसविंदर सिंह ने बताया कि वह 20 एकड़ जमीन में सुपरसीडर से गेहूं की बिजाई भी करते है। उन्होंने कहा कि सुपरसीडर मशीन के माध्यम से पराली को जलाए बिना सीधे गेहूं की बिजाई की जा सकती है।
गांव हरिपुर खालसा के किसान परमजीत मल्ल ने कहा कि वह सुपर एस.एम.एस.धान की कटाई के बाद वह सुपरसीडर से गेहूं की बिजाई करते है और पिछले 7 साल से लगातार खेतों में पराली की जुताई कर रहे है।
इसी गांव के किसान परविंदर सिंह ने 25 एकड़ जमीन में धान की पराली पशुओं के चारे के लिए उचित बनाने के बाद रोटावेटर के साथ फसल की बिजाई की जाती है उन्होंने कहा कि वह पिछले 4 साल से पराली को बिना जलाए ही उसका प्रबंधन कर रहे है।
डिप्टी कमिश्नर विशेष सारंगल ने कहा कि पराली जलाने से जहां मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है, वहीं फसलों के लिए लाभदायक जमीन में मौजूद कई पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते है।उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे पराली के उचित प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा सबसिडी पर उपलब्ध करवाई गई मशीनरी का उपयोग करें।उन्होंने कहा कि इस वर्ष पहले ही 5618 मशीनें कस्टम हायरिंग सैंटरों, सहकारी समितियों, समूहों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा चुकी है तथा 857 और मशीनों की स्वीकृति प्राप्त हुई है, जिनमें से 425 मशीनें किसानों द्वारा खरीदी जा चुकी है।