पिछले 35 साल से पंजाब में रहता आया. पहचान पत्र यहीं का. बच्चे यहीं हुए. उनके बच्चे इसी पिंड में जन्मे. लेकिन यहां वालों के लिए हम ‘भैये’ हैं. हम इनके घर तो बनाएंगे, लेकिन भीतर पांव नहीं धर सकते. इनकी फसलें उगाएंगे, लेकिन साथ निवाला नहीं तोड़ सकते. छोटी-सी भूल और गले से पकड़कर निकाल दिए जाएंगे. मेरे साथ भी यही हुआ. बरसते पानी में मरी हुई छिपकली की तरह गांव से फेंक दिया. मन उचट चुका है. हम बिहार लौट जाएंगे!’