जालंधर, (संजय शर्मा)- नज़दीक रेलवे स्टेशन में नवरात्रों के उपलक्ष्य में मां भगवती महिमा पर आधारित भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री शशिप्रभा भारती जी ने बताया कि नवरात्रों का पर्व शुरू हो चुका है। समूचा भारत मातृमय हो रहा है। जिस नवरात्रों के पर्व में हम प्रत्येक वर्ष तन मन धन से सम्मिलित होते हैं उसी के मूलभूत तथ्यों से आज हम अनजान हैं। जिन नवरात्रों को इतनी धूमधाम से मनाते हैं उसमें क्या अध्यात्मिक संदेश है आज हम नहीं जानते। हमारे भारत की सांस्कृतिक भूमि पर मनाया जाने वाला कोई भी पर्व विलासी एवं आयोजन रसिक मन की उपज नहीं है प्रत्येक त्यौहार सप्रयोजन है। अपने भीतर आध्यात्मिकता व वैज्ञानिकता को संजोए हुए हैं। नवरात्रि भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। नवरात्रे वर्ष में दो बार आते हैं और दोनों बार ऋतुओं की संधि बेला पर मनाए जाते हैं। इस संधि बेला के समय संपूर्ण वातावरण अनेक प्रकार के परिवर्तनों के दौर से गुजरता है। आरोग्य शास्त्र के अनुसार इस समय महामारी, ज्वर, शीतला जैसे अनेक रोगों के होने की संभावना प्रबल हो जाती है। अतः खान-पान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले हमारे ऋषिगण इस आवश्यकता से पूर्णतः परिचित थे। यही कारण था कि उन्होंने इन दिनों में फलाहार अथवा काम और सुपाच्य आहार लेने पर बोल दिया। बस इसलिए ही नवरात्रों के दौरान व्रत उपवास आदि के विधान है।
दूसरा, नवरात्रों के इन दिनों में देवी के तीन रूपों की उपासना करने की भी परंपरा है। यह तीन रूप है मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां शारदा। उनकी परंपरागत उपासना के पीछे भी एक गूढ़ संदेश छिपा है। देवी दुर्गा शक्ति का प्रतीक है। लक्ष्मी धन, ऐश्वर्य, वैभव की द्योतक हैं। तो मां शारदा सर्वोत्तम विद्या अर्थात ब्रह्म ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। अतः इन तीनों देवियों का पूजन विधान शक्ति, वैभव, ज्ञान के समन्वय के महत्वता पर प्रकाश डालता है। यह संकेत करता है कि जीवन को शांत एवं पूर्णतः सफल बनाने के लिए एक मानव के जीवन में इन तीनों की समरसता जरूरी है।
कार्यक्रम के अंत में सभी भक्तों ने मिलकर आरती का गुनगान किया।