सुप्रीम कोर्ट ने कहा: सरकार यह सुनिश्चित करें कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न हो

नई दिल्ली, पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट का आज फैसला आना है. पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने लगातार 10 दिन तक सुनवाई के बाद 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल से इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान साफ कर दिया था कि वो इस उम्मीद से कोई संवैधानिक घोषणा नहीं कर सकती कि संसद इस पर कैसी प्रतिक्रिया देगी. वहीं, सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया था. केंद्र ने ये भी दलील दी थी कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने या न देने का अधिकार संसद का है, न कि अदालत का.

– पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से जुड़ी दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में दायर याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.

– इससे पहले 25 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट में भी दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस भेजा था.

– अलग-अलग अदालतों में दाखिल याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 6 जनवरी को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

– समलैंगिकों की ओर से दाखिल इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत शादी से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिक विवाह को अनुमति देने की मांग की गई थी.

– समलैंगिकों ने ये भी मांग की थी कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए.

– एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.

केंद्र क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ?

– केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी.

– केंद्र ने कहा था कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें.

– हलफनामे में केंद्र ने दलील दी कि समलैंगिक विवाह को इसलिए मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि कानून में पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

– कोर्ट में केंद्र ने कहा था, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी. इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं.

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