सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के 25 हफ्ते के गर्भ के अबॉर्शन वाले अपने फैसले पर रोक लगा दी. इसी 9 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय ने महिला को अबॉर्शन की अनुमति दी थी और एम्स (AIIMS) को संबंध में निर्देश दिये थे. 10 अक्टूबर को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अगुवाई वाली बेंच ने इस बात का संज्ञान लिया कि एम्स के डॉक्टर इस मामले को लेकर संशय की स्थिति में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब भ्रूण में जीवन के लक्षण हैं और यह सर्वाइव कर सकता है. ऐसे में अबॉर्शन उचित नहीं होगा.
एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसने अर्जी लगाई थी कि वह पहले से दो बच्चों की मां है. तीसरी प्रेगनेंसी 25 हफ्ते की. वह डिप्रेशन जैसी कई समस्याओं से जूझ रही है, ऐसे में अबॉर्शन चाहती है. सोमवार (9 अक्टूबर) को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने महिला को प्रेगनेंसी अबॉर्ट करने की अनुमति दे दी थी. डॉक्टरों के संशय को देखते हुए ASG ऐश्वर्या भाटी ने फिर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच को सामने मामले को रखा और कहा कि मेडिकल बोर्ड अबॉर्शन के पक्ष में नहीं है, जबकि न्यायालय ने अबॉर्शन की अनुमति दी है. CJI को पूरी बात भी बताई गई. इसके बाद फौरन मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने पूरी प्रक्रिया को होल्ड पर रखने का आदेश दे दिया.चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से 9 अक्टूबर वाले आदेश को वापस लेने के लिए एक औपचारिक आवेदन भी दाखिल करने को कहा. CJI ने कहा कि इस मामले को दोबारा उन्हीं दो जजों की बेंच ( जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस हिमा कोहली) के सामने लिस्ट करेंगे.