कांग्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक को 2010 में इसे आगे बढ़ाया

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं की 33% सीटें आरक्षित करने के दशकों से लंबित विधेयक ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को मंजूरी दे दी है, और इस संसद के विशेष सत्र में इसके पास होने की पूरी संभावना है। अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल इसके लिए प्रतिबद्ध हैं और एनडीए के पास कुछ गैर-सहयोगी लेकिन मौके पर साथ देने वाले मित्रवत दलों के साथ लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत हासिल है। ऐसे में एक ही सवाल रह जाता है कि कानून कब लागू किया जाएगा? संसद के अलावा, आधे से अधिक यानी 15 राज्यों की विधानसभाओं से संविधान संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दिलानी होगी। चुनाव आयोग को भी उन निर्वाचन क्षेत्रों को चिन्हित करने के लिए समय चाहिए जहां केवल महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं। अधिकांश राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह 2024 में होने वाले लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों से पहले नहीं किया जा सकता है। हालांकि, 2024 की दूसरी छमाही में कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के वक्त इसे लागू करने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। अगर मई 2024 में केंद्र की सरकार नहीं बदलती है तो महिला आरक्षण के जल्द से जल्द लागू होने की संभावना बनी रहेगी। याद रहे कि जीएसटी बिल को अगस्त 2016 में राज्यसभा से पारित किए जाने के 11 महीने से भी कम समय में लागू कर दिया गया था। जीएसटी के मामले में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने तक राजनीतिक दलों में सर्वसम्मति नहीं थी, लेकिन इस बार ऐसी कोई बाधा नहीं दिखती है। वर्ष 2010 में महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा ने पारित कर दिया था, लेकिन लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका क्योंकि सत्ताधारी यूपीए गठबंधन का समर्थन करने वाली कुछ पार्टियों ने बिल पर मनमोहन सिंह सरकार का साथ देने इनकार कर दिया था। खासकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति करने वाली पार्टियों ने बिल का जबर्दस्त विरोध किया था। वो चाहते थे कि महिला आरक्षण में अलग से ओबीसी कोटा तय किया जाए। इस बार, बड़े ओबीसी आधार वाले अधिकांश राज्यों में भाजपा या कांग्रेस का सहयोगियों के साथ शासन है, जिससे पूरी तरह ओबीसी वोट बैंक आधारित पार्टियां अप्रासंगिक हो गई हैं। सिर्फ एक ही सूरत में महिला आरक्षण कानून के लागू होने में फिर से अड़ंगा आ सकता है जब 2024 में एक दल को बहुमत न मिल पाए और केंद्र में गठबंधन सरकार की वापसी हो जाए। दरअसल, संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण लागू हो पाएगा या नहीं, इसका सवाल कभी था ही नहीं बल्कि सवाल है कि यह कब होगा? इस तरह के आरक्षण पहले से ही शासन के निचले पायदान यानी पंचायती राज संस्थाओं में मौजूद हैं। यह केवल समय की बात है कि इन्हें शहरी निकायों, राज्यों और केंद्र में कब लागू किया जाएगा। चूंकि वर्ष 2024 में मोदी सरकार को पहले से ज्यादा एकजुट विपक्ष से सबसे कठिन चुनौती मिलने वाली है, इसलिए उसके पास महिला आरक्षण के दम पर एक बड़े वोटर वर्ग का समर्थन पक्का करने का यह अच्छा मौका है। महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाएगा तब एनडीए और यूपीए, दोनों दावा करेंगे कि उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में इतना बड़ा काम किया है। दरअसल, सफलता मिले तो श्रेय लेने की होड़ मचती ही है। लेकिन इसको संभव बनाने के लिए यूपीए या एनडीए में से किसी को भी श्रेय नहीं देना बेतुका होगा।यूपीए शासन के दौरान दोनों तरफ की सहमति के कारण राज्यसभा में आरक्षण विधेयक पारित हुआ था। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार गठबंधन की मजबूरियों के कारण अपना वादा पूरा नहीं कर सकी। मोदी के साथ ऐसी कोई समस्या कभी नहीं रही। उन्होंने राजनीतिक रूप से लाभकारी समय चुना है जो सिर्फ वही कर सकते थे। बीजेपी या उसके सहयोगी अकेले 15 राज्यों पर शासन करते हैं जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी सात अन्य राज्यों पर। चूंकि केवल 15 राज्यों के समर्थन की जरूरत है, इसलिए विधेयक को कानून का रूप देने के लिए संविधान संशोधन की कोई समस्या नहीं है। आरक्षण विरोधी दलीलों के बावजूद निर्वाचित पदों पर इतनी सारी महिला सांसदों और विधायकों का होना बहुत महत्वपूर्ण बात होगी। कम से कम संसद और विधानसभाओं में सदस्यों का व्यवहार बदल जाएगा। दोनों जगहों पर पुरुषवादी मानसिकता पर लगाम कसेगी और महिलाएं सशक्त होंगी। यह संभव है कि शुरुआत में सांसद और विधायक अपनी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए परिवार के सदस्यों (पत्नियों, बेटियों, बहुओं) का इस्तेमाल करेंगे, और जब तक घर में पितृसत्ता का शासन होगा, महिला सांसद-विधायक व्यापक प्रभाव वाले महत्वपूर्ण विधेयकों पर अपनी मर्जी से वोट नहीं दे सकेंगी। लेकिन एक दिन यह स्थिति भी बदलेगी जब संसद और विधानसभा में महिला सदस्यों की संख्या में ठीकठाक इजाफा होगा जिससे महिलाएं महसूस करेंगी कि उन्हें अब किसी का निर्देश लेने की जरूरत नहीं है। ऐसा निश्चित रूप से होगा। आरक्षण विधेयक का संसद में फिर से आना इस बात का सबूत है कि राजनीति में महिलाओं भागीदारी बढ़ रही है। चुनाव दर चुनाव यह सच साबित हुआ है। बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने शराबबंदी का फैसले लिया तो महिलाओं ने इसका काफी बढ़-चढ़कर समर्थन किया। उज्ज्वला गैस सिलिंडर और शौचालय निर्माण कार्यक्रमों के कारण वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में महिला मतदाताओं के बड़े वर्ग ने मोदी सरकार का समर्थन किया था। वहीं, कर्नाटक में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा और हर महीने निश्चित रकम देने के वादे ने चुनाव में बढ़त दिलवा दी। नल से जल, घरों को पाइप से पानी उपलब्ध कराने की योजना, अभी भी मोदी को 2024 में मदद करने वाला एक प्रमुख कारक साबित हो सकती है। महिलाएं अपने लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर वोट करने लगी हैं। चुनाव-दर-चुनाव इसी पैटर्न को देखते हुए राजनीतिक दलों को यह समझ में आ गया कि अब संसद और विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व नहीं रोका जा सकता। यह एक ऐसा विचार है जो बहुत पहले से व्यापत है, लेकिन किसी कानून को पारित करने के लिए सही समय का इंतजार करना ही पड़ता है। अब वो वक्त भी आ गया।

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