नई दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) सेवा विस्तार विधेयक मंगलवार को संसद में पेश किया जाएगा। इससे पहले बदलाव करते हुए विधेयक से अध्यादेश की धारा 3ए को हटा दिया गया है, जो राज्य विधानसभा को ‘सेवाओं’ पर कोई भी कानून बनाने से प्रतिबंधित करती थी। विधेयक में अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकार पर प्रधानता के लिए केंद्र द्वारा बनाए गए अध्यादेश के सभी प्रमुख प्रावधान शामिल हैं। विधेयक में विधानसभा के लिए बनाई गई भूमिका अहम है और ऐसा लगता है कि इसका मकसद सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछा गया वो सवाल है कि क्या राज्य सरकार को ‘सेवाओं’ के मामले में किसी भी भूमिका से इनकार किया जा सकता है।
‘सेवाओं’ में राज्य सरकार की भूमिका तय करने के अलावा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक केंद्र सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दिल्ली सरकार के लिए अध्यादेश के तहत अनिवार्य आवश्यकता को भी हटाया गया है। यह केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों से संबंधित मंत्रियों के आदेशों/निर्देशों को उपराज्यपाल (एलजी) और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखने को अनिवार्य करने वाले प्रावधान को भी हटाया गया है।
अध्यादेश में एक और बदलाव करते हुए, सरकार को सांविधिक निकाय में किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या एलजी द्वारा नियुक्ति के लिए उपयुक्त व्यक्तियों के एक पैनल की सिफारिश करने की अनुमति देने के लिए बिल की धारा 45 डी में उप-धारा (बी) जोड़ा गया है। अध्यादेश में (धारा 45डी के तहत) ऐसी सभी शक्तियां राष्ट्रपति या दूसरे शब्दों में केंद्र के पास रहेंगी। हालांकि, यह रियायत इस शर्त के साथ दी गई है कि राज्य सरकार की सिफारिश करने की शक्ति केवल राज्य विधानसभा द्वारा निर्मित और शासित निकायों तक ही सीमित होगी।