जालंधर, लोकसभा उप चुनाव के दिन की शुरूआत हो चूकी

जालंधर, (रोजाना आजतक)-जालंधर में उप चुनाव के दिन नजदीक आ रहे है। हर पार्टी अपना नेता चुनाव मैदान में उतार चूके हैं। हर पार्टी अपना कार्य लगातार कर रहे है। आए दिन कोई नई ही कहानी बन रही है। कुछ नराजगी के कारण दूसरी पार्टी में जा रहे हैं। वहीं कोई खुशी से जा रहे हैं। इस तरह फेर बदल का सिलसिला चल रहा हैं। उप चुनाव मैदान में उतारे नेताओं की बात करें। जिन्होंने अपने कार्य में क्या कुछ किया है।  कांग्रेस पार्टी जालंधर में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में 13 बार कांग्रेस को जीत हासिल हो चुकी है। बीते चार चुनाव से कांग्रेस ही इस सीट पर जीतती रही है। यह सीट दो बार शिरोमणि अकाली दल और दो बार ही जनता पार्टी की झोली में भी जा चुकी है। कांग्रेस उम्मीदवार करमजीत कौर के पति चौ. संतोख सिंह लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं।  कर्मजीत कौर चौधरी के ससुर मास्टर गुरबंता सिंह आजादी से पहले से सियासत में थे और पंजाब के मंत्री रह चुके हैं। परिवार का कांग्रेस का इतिहास 100 साल पुराना है।

आप ने जालंधर 2019 के आम चुनाव में उसकी करारी हार हुई थी। पार्टी के उम्मीदवार जस्टिस जोरा सिंह (जिन्होंने बेअदबी की घटनाओं की जांच की थी) को सिर्फ 25 हजार वोट (कुल मतों का 2.5 प्रतिशत) मिले। हालांकि, आप ने 2014 में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था, जब उसके उम्मीदवार ज्योति मान को 2.54 लाख वोट मिले थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में, आप जालंधर में कांग्रेस के गढ़ को नहीं तोड़ सकी क्योंकि बाद में जालंधर लोकसभा में आने वाले नौ में से पांच क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। इस बार आप ने कांग्रेस से आए सुशील रिंकू को सीट दी है।

बीजेपी इंदर इकबाल ने 2002 में कूमकलां सीट से विधानसभा चुनाव जीता था। हालांकि वह 2007 और 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में हार गए थे। पूर्व विधायक इंदर इकबाल सिंह अकाली नेता चरणजीत सिंह अटवाल के बेटे हैं। इंदर इकबाल वाल्मीकि मजहबी सिख परिवार हैं, उनके जरिए बीजेपी ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रही है। इंदर के पिता चरणजीत अटवाल 2004 से 2009 तक लोकसभा के डिप्टी स्पीकर रहे और 2 बार पंजाब विधानसभा के स्पीकर रहे। जालंधर के 954 गांवों में महजबी सिखों का खासा वोट बैंक हैं। दूसरा, अटवाल पगड़ीधारी सिख हैं जिससे पार्टी को उम्मीद है कि सिक्ख वोट भी उनकी तरफ आ सकती है।

डॉ. सुखविंदर सुक्खी को शिरोमणि अकाली दल बतौर उम्मीदवार उतारा है।  1997 के बाद यह पहली बार होगा कि शिरोमणि अकाली दल का भाजपा से गठबंधन नहीं है और इस बार बसपा से गठबंधन कर वह मैदान में है। 2017 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल के हिस्से 25.2 फीसदी वोट और 15 सीटें आई थीं, शायद इनका ग्राफ यहीं से तेजी से गिरना शुरू हुआ। बसपा का जालंधर के गांवों में खासा जनाधार है। लोकसभा चुनावों में बसपा उम्मीदवार बलविंदर कुमार को 2 लाख से अधिक मत मिले थे। अकाली दल व बसपा की रणनीति है कि गांवों में दलितों के अलावा जाट बिरादरी की वोट लेकर कांटे की टक्कर बाकी उम्मीदवारों को दी जा सकती है।

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