जालंधर, (विशाल /रोजाना आजतक)-किसान धान की पराली के प्रबंधन को लेकर आगे आने लगे हैं। कुछ जागरूक किसानों ने पराली का इस्तेमाल दुधारु पशुओं के चारें के लिए शुरू कर दिया है। इसके साथ वातावरण को भी प्रदूषित होने से बचाने में योगदान डाल रहे हैं।गांव सलेमपुर मसंदा का किसान जसकरन सिंह अपने गांव के डेयरी वालों और गुज्जर भाईचारे के दुग्ध व्यवासियों को पराली बेचकर आमदनी कर रहे हैं और वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने में जुटे हुए हैं। जसकरन सिंह ने बताया कि जिले में कई गऊशालाएं है, जहां फसलों के अवशेषों का प्रयोग पशुओं के चारों के लिए किया जा सकता है। गांव बहराम सरिश्ता के किसान प्रीतपाल सिंह भी डेयरी का काम करने वाले किसानों को पराली बेचकर अपनी आमदन में विस्तार करने के लिए प्रेरित रहे हैं। उन्होनें कहा कि किसानों को पराली जलाने की बजाय इसका प्रबंधन करना चाहिए।डेयरी माहिरों के अनुसार छोटे टुकड़ों वाली चार क्विंटल पराली अगर 14 किलो यूरिया और 200 लीटर पानी के साथ तैयार की जाए तो यह दुधारू पशुओं के लिए बढ़िया खुराक बन जाती है। यूरिया के साथ बनाई गई पराली और ज्यादा पौष्टिक होती है और इसे दो हफ़्तों के लिए रखकर इसका प्रयोग पशु चारें के तौर पर किया जा सकता है। गाय के बछडों को यह चारा नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह भारी होता है और इसको पचाने में उनको ज्यादा समय लगता है।मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिन्दर सिंह ने कहा कि कृषि और किसान भलाई विभाग की तरफ से किसानों को धान की पराली न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है, जिसमें पंचायतों की तरफ से पराली जलाने ख़िलाफ़ मदद की जा रही है। इस दौरान बड़ी संख्या में किसान दूसरे किसानों को जागरूक करने में योगदान दे रहे हैं। गांव सलेमपुर मसंदा के किसानों से प्रेरणा लेकर दूसरे गांवों के किसान भी पराली जलाने की जगह इसे पशु चारे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। गांव कोटला के जतिन्दर सिंह, गांव तलवंडी के शरनजीत सिंह, गांव और गाँव बुल्लोवाल के बूटाराम पराली को आग न लगाकर इसका प्रयोग अपने पशुओं के चारों के तौर पर कर रहे हैं।