नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई शुरू कर दी. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ बुधवार से इस मामले पर हर दिन सुनवाई करेगी. पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण ‘निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा.’ सिब्बल, जो पूर्ववर्ती राज्य को दिए गए विशेष दर्जे को छीनने से जुड़े 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाले अकबर लोन की ओर से पेश हो रहे हैं, ने कार्यवाही को ‘ऐतिहासिक’ बताया और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने वाले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की वैधता पर सवाल उठाया.
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, ‘यह कई मायनों में एक ऐतिहासिक क्षण है. यह अदालत इस बात का विश्लेषण करेगी कि 6 अगस्त, 2019 को इतिहास को क्यों बदला गया और क्या संसद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी. क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को चुप कराया जा सकता है? यह ऐतिहासिक है क्योंकि इसमें 5 साल लग गए हैं और यह अदालत इस मामले की सुनवाई करेगी और 5 साल से वहां कोई सरकार नहीं है. जो अनुच्छेद लोकतंत्र को बहाल करने के लिए था, उसका इस्तेमाल लोकतंत्र को अपवित्र करने के लिए किया गया है, लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है?’
सिब्बल ने संविधान पीठ से कहा, ‘क्या किसी राज्य के राज्यपाल ने 28 जून, 2018 को यह पता लगाने की कोशिश किए बिना विधानसभा को निलंबित रखने का फैसला किया कि सरकार बन सकती है. क्या 2018 में विधानसभा का विघटन हो सकता था? 21 जून, 2018 को अनुच्छेद 356 का उपयोग करने से पहले इन मुद्दों को कभी नहीं उठाया गया या निर्णय नहीं लिया गया और इसीलिए यह एक ऐतिहासिक सुनवाई है.’सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘आज भारत की संसद किसी प्रस्ताव के जरिये यह नहीं कह सकती कि हम संविधान सभा हैं. कानून की दृष्टि से भी वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे अब संविधान के प्रावधानों के द्वारा संचालित हैं. सरकार को संविधान की मूल विशेषताओं का पालन करना चाहिए. वे आपातकालीन स्थिति, बाहरी आक्रमण को छोड़कर लोगों के मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं कर सकते. ये भी संविधान के प्रावधानों द्वारा तय है.’