पटना. डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह (Dr. Raghuvansh Prasad Singh) ने अपने जीवन के आखिरी क्षणों में महाभारत के भीष्म पितामह की तरह पक्ष और विपक्ष दोनों को को नीति सम्मत राजनीति का पाठ पढ़ाया. मृत्यु शैया पर पड़े रहने के बावजूद उन्होंने राजद और जदयू को राजधर्म की शिक्षा दी. उन्होंने जाते-जाते राजद को सत्यनिष्ठा की याद दिलायी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को पांच बड़े उत्तरदायित्व सौंपे. रघुवंश बाबू जैसे नेता विरले ही पैदा होते हैं. वे राजनीति में रह कर भी सत्ता निरपेक्ष थे. वे सहज थे, सरल थे और मिजाज से फक्कड़ थे. विद्वान प्रोफेसर होने के बावजूद उन्होंने जनता से जुड़ने के लिए अपनी देसी शैली विकसित की. सच बोलने के साहस ने उन्हें विशिष्ट बनाया. लालू यादव जैसे मजबूत नेता को सिर्फ वही खरी-खरी सुना सकते थे. मौत से दो दिन पहले उन्होंने लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को बेधड़क कहा था- बापू, जेपी, लोहिया, अम्बेडकर और कर्पूरी की जगह एक ही परिवार के पांच लोगों की तस्वीर बर्दाश्त नहीं. नीति-सिद्धातों से समझौता करने के लिए उन्होंने लालू यादव की सार्वजनिक आलोचना की थी. उन्होंने 10 साल पहले भी लालू को गलत फैसला लेने से रोका था,लेकिन लालू यादव ने उनकी बात नहीं मानी थी. अगर लालू ने उस समय उनकी बात मान ली होती तो आज राजद की ऐसी हालत नहीं होती.