हमने अपने दम पर आईएनएस विक्रांत बना लिया, बहुत अच्छा! लेकिन बात इतने से नहीं बनेगी

नई दिल्ली, एयरक्राफ्ट कैरियर, साथ में जंगी जहाज और समंदर की गहराइयों में गोता लगातीं पनडुब्बी। नौसैनिक ताकत का इससे बेहतर प्रदर्शन भला और क्या हो सकता है। दुश्मन देखकर ही डर जाए। अगर इसके बाद भी उसने किसी तरह की हिमाकत की तो कैरियर बैटल ग्रुप (BCG) पलक झपकते ही तेजी से लड़ाकू विमानों और मिसाइलों से दुश्मन पर टूट पड़ेगा। 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से बने करीब 45 हजार टन के स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत से समंदर में भारत की ताकत में इजाफा होने वाला है। अगले साल के मध्य तक जब इस पर 30 फाइटर जेट और हेलिकॉप्टर तैनात हो जाएंगे, जब यह पूरी तरह कॉम्बैट-रेडी हो जाएगा, तब भारत की नौसैनिक क्षमता में जबरदस्त इजाफा होगा। देश पिछले करीब दो साल से बिना किसी एयरक्राफ्ट कैरियर के था। विक्रांत से पहले आईएनएस विक्रमादित्य भारत के पास था तो लेकिन वह मैंटनेंस की वजह से ऑपरेशनल नहीं था। आईएनएस मूल रूप से रूसी एयरक्राफ्ट कैरियर है। 44,500 टन के ऐडमिरल गोर्शकोव को 2013 में रूस से 2.33 अरब डॉलर में खरीदा गया था। भारत को कम से कम 3 एयरक्राफ्ट कैरियर्स की जरूरत है। इसकी वजह ये है कि किसी भी वक्त देश के पास कम से कम दो एयरक्राफ्ट कैरियर ऑपरेशनल हालत में रहने चाहिए। इन्हें एक निश्चित अंतराल पर रीफिट और मैंटनेंस की जरूरत पड़ती है। जब कोई एक एयरक्राफ्ट कैरियर इस वजह से ऑपरेशनल न हो, तब दो जरूर ऑपरेशनल रहें। एक अरब सागर में तो दूसरा बंगाल की खाड़ी में। इसके लिए भारत को तेजी से काम करने की जरूरत है। सरकार की तरफ से आईएनएस विक्रांत को सबसे पहले जनवरी 2003 में बनाने को मंजूरी मिली थी। लेकिन उसके बनने और नेवी में कमिशनिंग में करीब 2 साल का वक्त लग गया।

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